(नागपत्री एक रहस्य-31)
लक्षणा के दादाजी अर्थात् दिनकर के पिताजी ने अब तक का जीवन सामान्यतः भक्तियों में बिताया था, जिसके लिए किसी भी प्रकार की शक्ति या परीक्षा की आवश्यकता नहीं रही, और इसी कारण उनका स्वभाव अत्यंत सरल और सौम्य प्रवृति का था।
जिसके ठीक विपरीत उनके गांव के मन्दिर और वहां की जगह अपना परिदृश्य दिखा रहा था, यहां सब कुछ उनके सोच के विपरीत लेकिन आईने की तरह साफ़ था, क्योंकि कहीं पर बर्फ की खड़ी पारदर्शी दीवारें तो कहीं जल की स्वच्छ धाराएं, जिसमें आर पार देखा जा सकता है।
वहां बहने वाली नदियां भी इस तरह थी, जिसमें धरातल के एक-एक कंकड़ को भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था, वह नदियां अत्यंत रहस्यमई और अपार शक्ति से परिपूर्ण जल को प्रभावित करती थी, क्योंकि वहां हर पत्थर तुरंत ही घर्षण के साथ शिवलिंग में परिवर्तित हो जाता है, इस तरह शिवलिंग की श्रंखला से परिपूर्ण वह स्वच्छ नदी और भी सुंदर जान पड़ती थी।
एक बार लक्षणा के दादाजी पूजा के समय ध्यान मग्न थे, तभी वहां एक भंवरा बड़ी तेज गति से लक्षणा के दादाजी की और लपका, जैसे वह उन्हें नुकसान पहुंचाना चाहता था।
लक्षणा के दादाजी ने चारों ओर नजर उठाकर देखा, तो वहां का सारा वातावरण अपने आप परिवर्तित होने लगा, अचानक वो भंवरा डर के मारे लक्षणा को देखकर वहां से चला गया, कुछ समय पहले वहां शीतलता का वातावरण था, लेकिन जब वह भंवरा वहां आया तो, अचानक जैसे वहां का वातावरण कभी तेज बौछार तो कभी तेज गर्मी का माहौल जैसे नजर आने लगा।
उनके घर में नाग दंड रखा हुआ था, नाग दंड का उपयोग लक्षणा के दादाजी ने देवी शक्ति को जागृत करने हेतु ही अति शीघ्र किया।
उन्होंने देखा कि कमल दंड के ठीक सामने अचानक किसी आईने की तरह एक और कमल खिला हुआ था, बस इतना था कि वह रिक्त था।
लक्षणा ने तुरंत उस नाग दंड को उस कमल दंड की ओर मुख रख वहां स्थापित कर दिया, देखते ही देखते उस कमल दंड के ऊपर का कमल खिल उठा।
नाग दंड शांत होकर विलीन हो गया, और संपूर्ण वातावरण एक नीली आभा से आच्छादित हो उठा,और लक्षणा के दादाजी जी ने उस दंड को प्रणाम की मुद्रा में आकर स्तुति की, तब नीचे तीनों कमल अचानक अपने स्थान पर विपरीत दिशा में घूमने लगे।
और वह कमल दंड एक महिला का आकार लेने लगे, उन्होंने अपने मूल रूप में प्रकट हो लक्षणा के दादाजी और लक्षणा को आशीर्वाद प्रदान किया, और अपना परिचय अटालीका गंधर्व रानी के रूप में दिया।
अटालीका अपने माथे पर लालमणि को धारण कर कमल दंड के रूप में लक्षणा को देख रही थी, और अपनी शक्ति का परिचय देने के पश्चात लक्षणा और उसके दादाजी को उनका दर्शन संभव हो पाया।
उन्होंने लालमणि से लक्षणा को स्पर्श किया और आशीर्वाद दिया, और वो वहां से चली गईं।
तब लक्षणा ने अपने दादाजी से कुछ नाग और सर्पों के बारे में जानना चाहा, तब वे कहते है कि, दादी से तो तुमने नाग और सर्प के बारे में बहुत सुना है, हां दादाजी सुना तो हैं, अब थोड़ा कुछ आप भी बता दीजिए ।
तब दादाजी मुस्कुरा कर कहते है, कि दादी से इतना कुछ सुनने के बाद भी तुम्हें मुझसे सुनना है, तब लक्षणा हंसकर कहती है कि , हां दादा जी मुझे आपसे भी कुछ जानना है, तब दादा जी कहते हैं कि नाग और सर्पों के बारे में लोग अलग-अलग कहते हैं, मतलब क्या हैं दादाजी अलग अलग???अच्छा दादा जी भगवान शिव के गले में नाग राज क्यों विराजमान होते है।
हां,, फिर वे बताते हैं कि,
भगवान शिव जी को आदि गुरु माना गया हैं, कहा जाता हैं कि शिव जी ने ही अपने प्रिय भक्तों को तंत्र साधना और ईश्वर को पाने का रास्ता दिखाया है, शिव में साधना से कुण्डलिनी शक्ति को नियंत्रित कर लेने की शक्ति हैं, जिसका प्रतीक उनके गले में लिपटा सांप माना गया हैं।
मतलब दादाजी मैं समझी नही, लक्षणा ने अपने दादाजी से उत्सुकता वश पुछा,
मतलब की शिवजी ने सर्प जैसे विषैले, भयानक और विरोधी भाव वाले जीव के साथ भी अपना सामंजस्य स्थापित कर लिया है, इसके अलावा शिवजी ने सांप को गले में लपेटकर यह भी संदेश दिया है कि दुर्जन भी अगर अच्छे काम करें, तो ईश्वर उसे भी स्वीकार कर लेते हैं।
भगवान शिव के गले में लिपटे नजर आने वाले सांप का नाम वासुकी है, जो भगवान शिव के अति प्रिय भक्त हैं, शिव नागों के ईश्वर हैं और शिव का उनसे अटूट संबंध हैं, जिसे देखते हुए हर साल नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है, इस दिन पूरे श्रद्धा भाव से नागों की पूजा-अर्चना की जाती है, ऐसा करने से शिव जी को खुशी मिलती है और वो अपने भक्तों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
गले में रहने का दिया वरदान नागों के शेषनाग (अनंत), वासुकी, तक्षक, पिंगला और कर्कोटक नाम से पांच कुल थे, इनमें से शेषनाग नागों का पहला कुल माना जाता है, इसी तरह आगे चलकर वासुकि हुए, जो पूरे सच्चे भाव के शिव जी की भक्ति किया करते थे।
शिव जी वासुकी की श्रद्धा-भाव से पूर्ण भक्ति देखकर बेहद खुश हुए, और वासुकी को गले में धारण करने का वरदान दिया, शिव की भक्ति से मिले इस वरदान के कारण ही एक सांप भगवान शिव के गले में लिपटा हुआ नजर आता है।
किवदंतियों के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण को उनके पिता वासुदेव गोकुल ले जा रहे थे, तब नागराज वासुकि ने ही यमुना के तूफान में उनकी रक्षा की थी, इसके साथ जब देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया गया था, उस दौरान मेरू पर्वत को मथने के लिए वासुकि नाग का ही रस्सी के रूप में प्रयोग लिया गया था, इसी दौरान समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने गले में धारण कर लिया था, और घर्षण के कारण वासुकि लहूलुहान हो गए थे, पुराणों में यह भी बताया गया है कि नागराज वासुकि के सिर पर नागमणि स्थपित है।
अपने दादा जी के मुख से नाग और सर्पों का विस्तृत वर्णन सुन लक्षणा को बहुत अच्छा लगा , तब दादाजी लक्षणा से कहते हैं कि, क्या आज ही सारी कहानी तुम सुन लोगे?? अभी तुम्हें स्कूल की पढ़ाई भी करनी है, जाकर के अपना स्कूल का वर्क पूरा करो, कहकर दादाजी वहां से चले गए, और लक्षणा अपने कमरे में जाकर पढ़ाई करने लग जाती है
क्रमशः....
Mohammed urooj khan
25-Oct-2023 12:05 AM
👍👍👍👍
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